क्या कभी सुनी है तुमने
किसी बीज के चटखने की आवाज ?
पौधा कब बाहर आता है
देखा कभी किसी ने ?
मिटटी को खोदे जाने पर
कभी चीत्कार नहीं की उसने
चिड़िया डरती नहीं कभी
सूखे पत्ते के गिरने से
हवाओ के तेज बहने पर
टहनियां नहीं होती परेशान
बादलों से घिर जाने पर
सूरज नहीं खोता अपनी गरमी
सदियों से रहा है यह चक्र
ऐसा ही
कोई नहीं करता शिकायत
किसी से
पर कब तक ?
इस आदमी ने
सब कुछ डाल दिया है
खतरे में
कुछ सजा तो देगी हमें
प्रकृति भी
चाहे वह कितनी ही दयावान क्यों न हो
Sunday, August 7, 2011
Monday, March 7, 2011
नारी
बनिस्बत एक खुबसूरत तस्वीर के
हकीकत के वजूद में आ चुकी है नारी
नारी- जिसे कमजोर कह कर ख़ारिज नहीं कर सकते
जो शामिल है
आपके हर अहम् फैसलों में कही न कही
बदल सकती है जो तस्वीर- तकदीर के हर पहलू को
लड़कर पाई है उसने ये हैसियत
कोई अहसान नहीं किया आपने उस पर
वो जी सकती है अपने दम पर
बर्बर ज़माने के हर जुल्म से जूझ कर
पाई इस हैसियत को
आप सलाम करे न करे
वो बढती जाएगी अपनी उस राह पर
जहा मंजिल उसका अंजाम तय नहीं कर सकती
बल्कि वो तय करेगी अपने अंजाम लायक मंजिल
-दिलीप लोकरे
इंदौर
हकीकत के वजूद में आ चुकी है नारी
नारी- जिसे कमजोर कह कर ख़ारिज नहीं कर सकते
जो शामिल है
आपके हर अहम् फैसलों में कही न कही
बदल सकती है जो तस्वीर- तकदीर के हर पहलू को
लड़कर पाई है उसने ये हैसियत
कोई अहसान नहीं किया आपने उस पर
वो जी सकती है अपने दम पर
बर्बर ज़माने के हर जुल्म से जूझ कर
पाई इस हैसियत को
आप सलाम करे न करे
वो बढती जाएगी अपनी उस राह पर
जहा मंजिल उसका अंजाम तय नहीं कर सकती
बल्कि वो तय करेगी अपने अंजाम लायक मंजिल
-दिलीप लोकरे
इंदौर
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